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लेखनी कहानी -27-Apr-2022 सागर की गोद में

भाग 3 जैसे ही डॉक्टर तरू ने डॉक्टर आनंद को कहा कि उसके दिमाग में कोई और औरत थी तो आनंद को एक शॉक सा  लगता है , लेकिन वह तुरंत कहता है । 


"गजब । तुमने सही कहा , तरू । तुम औरतों में इतना सेन्स , इतना दिमाग कैसे होता है कि तुम मर्दों का दिमाग भी पढ़ लेती हो ? हम मर्द लोग तो निरे अनाड़ी होते हैं । औरतों का दिमाग तो क्या उनका दिल भी नहीं पढ़ पाते हैं । तुम्हारे मुंह से सत्य और स्पष्ट बात सुनकर बहुत अच्छा लगा तरू । मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा और कोई बात छुपाऊंगा भी नहीं । मैं सच कह रहा हूं कि वास्तव में बात ही कुछ ऐसी है जिसके लिये मैंने तुम्हें यहां बुलाया था । रुको, मैं बाकी बात बाद में बताऊंगा पहले तुम मेरे साथ आओ" । 

तरू समझ नहीं सकी कि आनंद क्या करने वाले हैं । उसे तो लग रहा था कि उसकी बात से आनंद नाराज हो जाएंगे , पर ऐसा नहीं हुआ । आनंद तरू का हाथ पकड़ कर उसे पास वाले कमरे में ले गया । तरू यंत्रचालित सी उसके पीछे पीछे चल दी । 

वह कमरा ऑपरेशन थियेटर का मुख्य कमरा था जहां पर मुख्य ऑपरेशन होते थे । एक स्ट्रैचर पर एक मरीज लेटा हुआ था जिस पर एक सफेद चादर ओढ़ा रखी थी । वह चादर भी खून से सनी हुई थी । पास जाकर आनंद ने उस मरीज के मुंह के ऊपर से वह चादर हटा दी । जैसे ही चादर हटी, तरू के मुंह से चीख निकल गई । उस मरीज का सारा चेहरा बुरी तरह से कुचला हुआ था । ऐसा लग रहा था कि जैसे वह एक चेहरा नहीं बल्कि मांस का एक लोथड़ा था । 

डॉक्टर तरू ने भी बहुत से बिगड़े हुए केस देखे थे मगर उसका सब्जेक्ट "गायनिक" था और उसके केस अधिकांशतः "ब्लीडिंग" से संबंधित होते थे । हद से हद यह होता था कि "डिलीवरी" के समय कोई बच्चा "अंदर" ही फंस जाता था तो वह ऑपरेशन करके उसे बाहर निकाल देती थी । कभी कभी बच्चे की अंदर ही मृत्यु हो जाती थी या कभी "जच्चा" की मृत्यु हो जाया करती थी । मगर ऐसा वीभत्स चेहरा उसने आज तक कभी नहीं देखा था । उसका सिर ! हे भगवान ! जैसे "खल्लड़" में कुटी हुई अदरक हो । एक डॉक्टर होकर भी वह उसे भरपूर नहीं देख सकी थी वह । तो एक आम इंसान उसे कैसे देख सकता था ?  वह शॉक से कांप गई थी । पास में रखी एक कुर्सी पर अगर वह नहीं बैठती तो शायद वह गिर पड़ती । 

"देखा तुमने । कितना वीभत्स चेहरा था उसका । किसी एक्सीडेंट में हुआ है ये हाल उसका । बचने की कोई संभावना नजर नहीं आती है इसकी । इसे तो इसके घरवालों ने भी मृत ही समझ लिया है । शहर के अन्य डॉक्टर्स ने भी इसे दुसाध्य मामला मानकर हाथ लगाने से ही इंकार कर दिया था । लेकिन इसकी बीवी ने अभी तक इसकी उम्मीद नहीं छोड़ी है और वह ही इसे लेकर मेरे पास आयी है । उसे किसी डॉक्टर ने कह दिया कि इस केस को केवल एक ही डॉक्टर हैंडल कर सकता है । और उसने इसे मेरे पास भिजवा दिया । इस मरीज की बीवी ने मुझसे गिड़गिड़ाकर कहा था 

"डॉक्टर, मैं जानती हूं कि मैं एक ऐसी मांग कर रही हूं जिसे संभवतः आप पूरी ना कर पायें । मगर आप एक बार पुरजोर कोशिश अगर करें तो शायद मेरे पति की जान बच जाये । मैंने तो केवल सुना था कि डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होता है । मैं आज उसे देखना चाहती हूं" ।

"उसके शब्दों में न जाने ऐसा क्या जादू था कि मैं लाख चाहने के बावजूद मना नहीं कर पाया । मैं इसकी हालत देखकर कांप उठा था । इसके बचने की न के बराबर संभावना है । इतना जटिल ऑपरेशन है यह कि शायद यह मेरे जीवन का सबसे अधिक जटिल ऑपरेशन हो । एक प्रतिशत से भी कम संभावना है कि मैं इसमें सफल होऊंगा । तुम तो जानती ही हो कि मैं ऐसी हालत में किस तरह तनाव में आ जाता हूं । इसकी हालत देखकर मैं ही क्या हर कोई न्यूरोसर्जन तनावग्रस्त हो जायेगा । और जब मैं तनाव में होता हूं तो फिर मुझे तुम याद आती हो , सिर्फ तुम । और तुम ये भी जानती हो कि उस समय मुझे क्या चाहिए" ? 

तरू डॉक्टर आनंद की बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी । वह थोड़ी देर चुप रही फिर बोली "आपका तनाव में आना समझ में आता है । तनाव में मुझे याद करना भी समझ में आता है । मगर "सफर" के दौरान मेरे साथ रहकर भी किसी और के खयाल में डूबना मेरी समझ में नहीं आया, सर" । तरू ने अपनी शंका प्रकट कर दी । 

"अरे वो .. । कहते कहते डॉक्टर आनंद अचानक रुक गये । तरू का हाथ पकड़ा और उसे कुर्सी से खड़ा कर लिया । तरू को साथ चलने का इशारा किया । तरू बिना कुछ बोले आनंद के पीछे पीछे चल पड़ी । 

डॉक्टर आनंद तरू के साथ ओ पटी से बाहर आये । यह कमरा मेडिकल अटेंडेंट्स के लिए था । उससे भी बाहर निकल कर एक दूसरे कमरे में आये । यह कमरा मरीजों के परिजनों के लिए था । वहां पर कुछ परिजन बैठे थे । तरू को लेकर आनंद एक तीस साल की आधुनिक सी दिखने वाली महिला के पास आये । 

तरू ने देखा कि वह महिला अनिंद्य सुंदरी थी । पदमावत में जिस तरह मलिक मुहम्मद जायसी ने रानी पद्मिनी के सौंदर्य का वर्णन किया था , उससे भी खूबसूरत थी वह स्त्री । चेहरे से नूर और बदन से लावण्य टपक रहा था । अंग अंग मादकता से लदा फदा था उसका । तरू भी उस रूप सौंदर्य को देखकर विस्मित रह गई थी । उसके चमचमाते रूप के सामने तरू एक साधारण सी स्त्री ही नजर आ रही थी । उसने तो कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि ऐसी रूपमती स्त्री भी इस धरती पर हो सकती है । कहानियों, किस्सों में ही ऐसी सुंदरियों के बारे में पढ़ा सुना था उसने । आज जब उसने "हुस्न का सागर" अपनी आंखों से देखा तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ । भगवान भी कितना रंगीन चित्रकार है । कैसे कैसे रंगीन व्यक्तित्व का निर्माण करता है वह । उसकी लीला वाकई अद्भुत है । 

डॉक्टर आनंद को देखकर वह औरत उसके कदमों में झुक गई । रो रोकर कहने लगी "बचा लो डॉक्टर, मेरे पति को बचा लो । एक आप ही से मुझे उम्मीद है डॉक्टर । आप ही मेरे भगवान हैं । आप कुछ भी करो मगर उन्हें बचा लो । उनके बिना मैं जी नहीं पाऊंगी, डॉक्टर । आप मेरा धन दौलत, पैसा सब कुछ ले लो मगर उन्हें बचा लो । मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूं आपसे, डॉक्टर" । उस औरत का रो रोकर बुरा हाल हो गया था । 

डॉक्टर तरू ने उसे धीरज बंधाने की कोशिश की और कहा "आप चिंता ना करें । इस केस को डॉक्टर आनंद देख रहे हैं न । और आज तक का रिकॉर्ड यही कहता है कि डॉक्टर आनंद ने जो केस हाथ में लिया है, वह सफल हुआ है । विश्वास रखो डॉक्टर आनंद पर, भगवान पर और अपने आप पर । डॉक्टर आनंद पूरी कोशिश कर रहे हैं । उम्मीद रखो । उम्मीद पर ही दुनिया कायम है" । डॉक्टर तरू ने आनंद की ओर देखा । आनंद उस सुंदर औरत को ही देखे जा रहा था । देख क्या रहा था बल्कि आंखों से ही उसे "पी" रहा था । डॉक्टर आनंद की नजरों में आज तरू ने ऐसी प्यास देखी थी जो पहले कभी नहीं देखी थी उसने । 

तरू को सब कुछ समझ में आ गया था । "तो यह औरत थी सर के दिमाग में ? वैसे वो है ही बला की खूबसूरत । वह तो हर मर्द के दिमाग में होनी चाहिए । इसमें सर का क्या दोष" ? 

डॉक्टर आनंद ने आज तक कभी किसी लड़की या औरत से उसका बदन नहीं मांगा था । जो भी लड़की या औरत उसके साथ हमबिस्तर हुई थी सब अपनी मरजी से हुई थीं । कभी छल कपट या जोर जबरदस्ती की जरुरत महसूस नहीं हुई थी डॉक्टर आनंद को । जब तरू जैसी सुंदर महिलाएं उसके लिये हमेशा तैयार रहती थीं तो फिर उसे और क्या चाहिए था ? 

मगर आज उसने जब से मेघना को देखा था तबसे ही डॉक्टर आनंद उस पर आसक्त हो गया था । ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई स्त्री पहली बार में ही आनंद को इतनी पसंद आ जायेगी कि वह उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाये । वह मेघना के बदन को हर हाल में पाना चाहता था चाहे एक बार ही क्यों ना हो । उसकी यह ख्वाहिश उसकी आंखों से झलक रही थी । एक बार तो उसके मन में आया भी था कि वह अपनी इच्छा उसके सामने रख दे । उससे उसके पति का इलाज करने का यही "मेहनताना" मांग ले । मगर उसने आज तक कभी किसी स्त्री से ऐसी कोई फरमाइश की नहीं थी । जब मुंह मांगी मुराद बिन मांगे ही मिल रही हो तब मांगने की क्या जरुरत थी उसे ? उसे बिन मांगे ही सब कुछ तो हासिल हो रहा था । मगर मेघना की बात कुछ और थी । उसके दमकते हुस्न की रोशनी में नहा गया था आनंद ।

अब तक उसके संपर्क में या तो अविवाहित स्त्री आई थी या कोई "सिंगल" महिला । किसी विवाहिता से कभी उसका पाला पड़ा नहीं था । ऐसा नहीं है कि उसके सारे दोस्त अविवाहित थे । जो विवाहित थे उनके परिवार से वह दूर ही रहा था अब तक । 

मगर मेघना तो एक विवाहिता स्त्री थी और वह भी ऐसी जो अपने पति की जिंदगी बचाने के लिए "सावित्री" की तरह यमराज से भी लड़ने की कोशिश कर रही थी । ऐसी सती, पतिव्रता स्त्री से वैसी "चाह" रखना क्या सही होगा ? 

एक पल को उसके मन में आया कि इसमें बुरा क्या है ? सभी तो करते हैं ऐसा । मजबूरी का फायदा सभी लोग उठाते हैं । वो भी उठा लेगा तो कोई पहाड़ तो टूट नहीं जायेगा ? मगर अगले ही पल विचार आया  कि वह एक डॉक्टर है और एक मरीज की जान बचाना उसका प्रथम कर्तव्य है । और फिर अगर कोई स्त्री बहुत सुंदर है तो क्या उसे पाने के लिए कुछ भी करना जायज है ? और वह भी उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर ? मन ही मन में उसने अपने आप को धिक्कार लगाई । "क्या क्या ख्वाहिशें रखने लगा है, बेवकूफ" ? उसके मन से आवाज आई । 

उसे थोड़ा संतोष हुआ कि अभी तक उसका जमीर जिंदा है, अभी मरा नहीं था । वह कुछ कह नहीं पाया था मगर दिमाग से मेघना को निकाल भी नहीं पाया था । तरू ने तो स्वयं महसूस किया था । क्या मेघना को पाये बिना आनंद ऑपरेशन कर पायेगा ? लगता तो नहीं है कि वह ऐसा कर पायेगा । तो क्या आज आनंद को असफलता मिलने वाली है ? तरू के दिमाग में यह प्रश्न कौंधने लगा । 

शेष अगले अंक में 

हरि शंकर गोयल "हरि" 
24.4 22 

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2 Comments

Punam verma

29-Apr-2022 09:32 AM

Very nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Apr-2022 04:30 PM

💐💐🙏🙏

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